ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :
देखते देखा मुझे तो एक बार उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार। देखकर कोई नहीं, देखा मुझे उस दृष्टि से जो मार खा रोई नहीं।
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘तोड़ती पत्थर’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।संदर्भ : एक गरीब मजदूरिन की असहाय हालत का वर्णन कवि ने सरल परन्तु मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है जो पाठकों के मन को द्रवित कर देता हैं।स्पष्टीकरण : कवि मजदूरिन की दयनीय दशा को देख रहा था। तभी मजदूरिन ने कवि को अपनी ओर देखते हुए देख लिया। उसने दृष्टि उठाकर छन भर के लिए उस वैभवशाली विशाल भवन की ओर देखा। जब उसे वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया तो उसने विवशता से कवि के तरफ देखा। उसकी दृष्टि वैसी थी जैसे कोई व्यक्ति लगातार शोषण से भयभीत होकर रोता नहीं है। शोषण ने उसके आँसू सुखा दिए थे।