प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘उल्लास’ नामक कविता से ली गई हैं जिसकी रचयिता कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान हैं।
संदर्भ : कवयित्री जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखती है। उन्होंने दुनिया से सिर्फ प्रेम करना सीखा, और जीभर के प्यार लुटाया, बदले में उन्हें भी ढेर सारा प्यार मिला।
स्पष्टीकरण : कवयित्री जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए कहती है कि मैं प्रेममयी हूँ, मेरा जीवन प्रेम से भरा हुआ है। यह संसार मुझे प्रेम रूपी सागर समान दिखता है। संसार के कण-कण में प्रेम बसा है एवं मैं इस निर्मल प्रेम को सभी पर लुटा रही हूँ।