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in Class 11 by kratos

उल्लास कविता का भावार्थ लिखें।

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by kratos
 
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1) शैशव के सुन्दर प्रभात का
मैंने नव विकास देखा।
यौवन की मादक लाली में,
यौवन का हुलास देखा॥
जग-झंझा-झकोर में मैंने,
आशा लतिका का विकास देखा।
आकांक्षा, उत्साह प्रेम का
क्रम-क्रम से प्रकाश देखा॥

कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान प्रस्तुत कविता में आशावादी दृष्टिकोण एवम् मानव-मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करती है।
कवयित्री कहती है- मैंने शैशव में सुन्दर प्रभात का विकास देखा है, यौवन की मादकता में यौवन का उल्लास देखा है। संसार की जूझती समस्याओं में (झंझा के झोंकों में) आशा-रूपी लतिका का विकास देखा है। प्रेम की आकांक्षा और उत्साह में क्रमिक विकास देखा है।

शब्दार्थ :

  • शैशव – बचपन;
  • प्रभात – प्रातःकाल, सवेरा;
  • मादक – नशीला;
  • हुलास – उल्लास;
  • आकांक्षा – चाह, इच्छा;
  • लतिका – लता।

2) जीवन में न निराशा मुझको,
कभी रुलाने को आई।
‘जग झूठा है’ यह विरक्ति भी,
नहीं सिखाने को आई॥
अरि-दल की पहिचान कराने,
नहीं घृणा आने पाई।
नहीं अशान्ति हृदय तक अपनी,
भीषणता लाने पाई॥

कवयित्री कहती है मेरे जीवन में निराशा नहीं, बल्कि आशा है। किसी भी रूलाने वाले अथवा सिखाने वाले प्रसंग में कभी मुझे विरक्ति नहीं हुई। क्या झूठ और क्या सच – इसका कोई प्रभाव मुझ पर नहीं हुआ। यहाँ तक कि शत्रु के लिए भी मेरे मन में घृणा नहीं है, हृदय में अशांति नहीं है।

शब्दार्थ :

  • विरक्ति – वैराग;
  • अरि-दल – शत्रुदल;
  • घृणा – नफरत;
  • भीषणता – भयानकता।

3) मैंने सदा किया है सबसे,
मधुर प्रेम का ही व्यवहार।
विनिमय में पाया सदैव ही,
कोमल अन्तस्तल का प्यार॥
मैं हूँ प्रेममयी, जग दिखता
मुझे प्रेम का पारावार।
भरा प्रेम से मेरा जीवन,

कवयित्री कहती है मेरे जीवन में निराशा नहीं, बल्कि आशा है। किसी भी रूलाने वाले अथवा सिखाने वाले प्रसंग में कभी मुझे विरक्ति नहीं हुई। क्या झूठ और क्या सच – इसका कोई प्रभाव मुझ पर नहीं हुआ। यहाँ तक कि शत्रु के लिए भी मेरे मन में घृणा नहीं है, हृदय में अशांति नहीं है।

शब्दार्थ :

  • विरक्ति – वैराग;
  • अरि-दल – शत्रुदल;
  • घृणा – नफरत;
  • भीषणता – भयानकता।

3) मैंने सदा किया है सबसे,
मधुर प्रेम का ही व्यवहार।
विनिमय में पाया सदैव ही,
कोमल अन्तस्तल का प्यार॥
मैं हूँ प्रेममयी, जग दिखता
मुझे प्रेम का पारावार।
भरा प्रेम से मेरा जीवन,
लुटा रहा है निर्मल प्यार॥
मैं न कभी रोई जीवन में
रोता दिखा न यह संसार।
मृदुल प्रेम के ही गिरते हैं,
आँखों से आँसू दो चार॥

कवयित्री कहती है- मैंने सदा प्रेम दिया है और बदले में मुझे प्रेम ही मिला है। मधुरता, कोमलता तथा प्रेम की भावना लिए हुए हूँ। सारे संसार को ही मैंने प्रेममयी बना लिया है। कवयित्री न कभी रोती है और न वह किसी को रोते देखना चाहती है। इस प्रकार कवयित्री सकारात्मक सोच को महत्व देती है।

शब्दार्थ :

  • पारावार – समुद्र;
  • मृदुल – कोमल।
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