समाज के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण रखनेवाले बच्चन जी ने गूंज-गूंज कर मिटनेवाले गीत बनाए। जब जब समाज के लोगों ने उनके सामने हाथ फैलाए, बच्चन जी ने अपने सुमधुर गीतों का कोष लुटाया जिससे उसका गीत सार्थक बन गया। इन वर्गों को लुटाकर अपने गीतों को लोगों से सुना-सुनाकर अपने गीतों को, वर्णों को खोकर वह गरीब हुआ है। यह कोष उनके लिए ‘निधि’ के समान था। इसे लुटाकर कवि अपने जीवन को सार्थक समझता है।