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in Class 11 by kratos

ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:

जब-जब जग ने कर फैलाये
मैंने कोष लुटाया,
रंक हुआ मैं निज निधि खोकर,
जगती ने क्या पाया?

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by kratos
 
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प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए’ से लिया गया है जिसके रचयिता डॉ. हरिवंशराय बच्चन’ हैं।
संदर्भ : इन पंक्तियों में कवि कह रहें है कि दुनिया के लिए मैंने क्या नहीं किया। निज निधि खोकर उन्होंने अपने कल्पना और भावनाओं से भरे काव्य रूपी खजाने को उन्होने दुनिया के लिए लुटाया है लेकिन जग ने उन्हें क्या दिया।
स्पष्टीकरण : कवि कहते हैं कि जब भी इस जग ने हाथ फैलाए, तो मैंने अपना कोष लुटा दिया और अपनी सम्पत्ति दूसरों को देकर मैं स्वयं रंक हो गया। इस संसार ने आखिर क्या पाया?

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