प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘तुम आओ मन के मुग्ध मीत’ नामक कविता से ली गई हैं जिसके रचयिता डॉ. सरगु कृष्णमूर्ति हैं।
संदर्भ : कवि यहाँ अपने मित्र को दुःख और दरिद्रता से ग्रसित इस संसार में आकर पाप को धुलाने के लिए कह रहे हैं।
स्पष्टीकरण : कवि अपने मित्र से कहते हैं कि, मैं दुःख, दरिद्रता व दीनता में घिर गया हूँ। अतः तुम आओ और इस आँधी, तूफान के थपेड़ों से बचालो। आशा है, तुम मेरी व्यथा मिटा दोगे। क्योंकि तुम ही मेरे मधुर मीत हो। इस तरह कवि अपनी भावना अपने मित्र के सामने व्यक्त करता हैं।