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in Class 11 by kratos

तुम आओ मन के मुग्धमीत कविता का भावार्थ लिखें।

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by kratos
 
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1) मैं तमस्तों में भीत-भीत-झट आओ मेरे किरणमीत।
जिससे कि टिमटिमाता चिराग-फिर जले सूर्य चंद्रमा रीत।
तुम आओ मन के मधुर मीत-मुसकाये मेरी मधुर प्रीत
जिससे कि दोपहर बने प्रात-चिर पाप बने प्रांजल पुनीत।

कवि कहते हैं- अंधकार में डूबकर भयभीत हो गया हूँ। तू आ, मेरे किरण रूपी मीत। मुझे आत्मा के टिमटिमाते हुए सूर्य व चन्द्र के प्रकाश में ले जा। मेरे मधुर मीत! मेरे पाप को पुण्य . में बदल दो।

2) जन्मों के जीवन मृत्यु मीत! मेरी हारों की मधुर जीत!
झुक रहा तुम्हारे स्वागत में मन का मन शिर का शिर विनीत।
तुम आओ मम कल्याण राग झन झना उठे मेरा अतीत
किल किला उठे कंटक परीत-अंगार हृदय मंदार गीत।

कवि कहते हैं- मेरे जन्म-मरण के पराजयों को जय में बदल दो। मैं तुम्हारा स्वागत शीश झुकाकर करता हूँ। तुम मेरे जीवन में कल्याण राग की तरह आओ जिससे मेरा अतीत भी ..आनंदमय हो उठे। कंटको के समान जीवन में, जलते हृदय में कोमल गीत गुनगुना उठे।

3) कितने दिन कितनी संध्याएँ कितने युग यों ही गए बीत
मैं जोह पथ वर्षा कामी-तरु-सा हूँ कब से शीत भीत।
झन झनन झनन झंझा झकोर-से झंकृत यह जीवन निशीथ
सब क्षणिक, वणिक वत् स्वार्थ मग्न तुम एक मात्र निस्वार्थ मीत।

कवि कहते हैं- कितने दिनों से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूँ? मैं भयग्रस्त हो गया हूँ। इस स्वार्थी संसार में केवल तुम्ही एक मेरे निस्वार्थी मित्र हो।

4) दुख दैन्य अश्रु दारिद्र्य धार-कर गए मुझे ही मनो-नीत
तूफान और इस आँधी में सुनवाने रज का जीव गीत।
टेरता रहा तुमको कब से मैं क्रीत क्रीत और प्रीत प्रीत
तेज गगन धरा पर धरी चरण हे हे अभीत ऐ ऐ सुभीत।

कवि कहते हैं- हे मीत! दुःख, दरिद्रता और दीनता से ग्रसित इस संसार में, मैं आँधी और तूफान के थपेड़ों को सहन करते हुए जी रहा हूँ। हे मीत (मित्र) तुम शुद्ध पवित्र बन आओ जिससे मेरे पाप भी धुल जाएँगे।

5) तुम नहीं सोच सकते कंपित-गुंफित है कितनी करुण प्रीत।
हे निराकार साकार सगुन-निर्गुण स्वरूप हे गुण परीत।
तुम देवलोक आनंद गीत-आशा अखण्ड शोभा परीत
मैं स्नेह विकल झंकृत प्रगीत-तुम आओ मन के मुग्ध मीत॥

कवि कहते हैं- इससे मुझे छुटकारा दिला दे मेरे मित्र! मुझमें करुणा भर दे, व्याकुलता मिटा दे, जीवन में प्रीति भर दे।

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