1) बाधाओं से मत घबराना।
कदम साधकर बढ़ते जाना।
कोई साथ न रहने पर भी
चन्दा-तारे साथ रहेंगे।
दर्द तुम्हारा बाँटेंगे वे,
तुमसे अपनी बात कहेंगे।
सच्चा साथी जान उन्हें तुम
अपनी सारी व्यथा सुनाना।
कवि कहता है कि बाधाओं से बिना डरे आगे बढ़ते जाना चाहिए। साथ कोई हो न हो, आगे बढ़ते जाना चाहिए। चाँद-सितारे तुम्हारा दर्द बाँट लेंगे। उन्हें सच्चा साथी मानकर अपनी व्यथा सुनाएँ।
2) वीराने में नदियाँ-निर्झर,
जैसे हरदम हँसते-गाते।
आप अकेले अपने साथी,
सदा अकेले बढ़ते जाते।
सच्चा साथी जान उन्हें तुम
जीवन-पथ पर कदम बढ़ाना।
कवि कहते हैं- नदियाँ व झरने हँसते-गाते हुए बढ़ते है। उनका कोई साथी नहीं रहता। वैसे ही तुम भी अकेले जाना। तुम अपने साथी स्वयं ही हो। उनको अपना सच्चा साथी समझकर वैसे तुम भी आगे बढ़ो।
3) पथ क्या वह बाधाएँ जिसमें
बार-बार टकराती ना हों।
और तितलियाँ रोक रास्ता
राही को ललचाती ना हों।
पर तुम डरकर या ललचाकर
बीच राह में मत रुक जाना।
कवि कहते हैं- पथ में कई बाधाएँ आती हैं। तितलियाँ रोककर तुम्हें ललचाएगी, परन्तु तुम न डरते हुए और न ललचाते हुए बीच राह में न रूकते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
4) मंजिल सदा उसी को मिलती
धीर-वीर जो बढ़ता जाता।
काँटों को भी फूल समझता,
विपदाओं से हाथ मिलाता।
कायर तो घबराते वे ही,
वीर न करते कभी बहाना।
कवि अन्त में कहते हैं कि मंजिल उन्हीं को मिलती है, जो धैर्य के साथ आगे बढ़ते हैं, जो काँटों को भी फूल समझकर पार करते हैं, जो विपत्तियों से हाथ मिलाते हैं। कायर तो घबराते हैं और वे डरने का बहाना बनाते हैं। वीर कभी बहाना नहीं बनाते। आगे बढ़ते रहते हैं।