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in Class 11 by kratos

ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:

इस धरा पर मृदुल रस धार-सी तुम सुख का सार हो नारी
तुम वंदनीय हो, अभिनंदनीय हो, सादर नमन तुम्हें हे नारी…!
धरा सी सहनशील, जल-सी निर्मल, फूलों सी कोमल तुम नारी
जीवन की गति, जीवन की रति, जीवन की मति हो तुम नारी…!

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by kratos
 
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प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘अभिनंदनीय नारी’ नामक कविता से लिया गया हैं जिसके रचयिता जयन्ती प्रसाद नौटियाल हैं।
संदर्भ : नारी की महत्ता का गौरव बताते हुए कवि कहते हैं कि वह वंदनीय, अभिनंदनीय है, वह धरती जैसी सहनशील, पानी जैसी निर्मल और कोमल है।
स्पष्टीकरण : नारी धरती की कोमल रस-धारा और सुख की सागर है। नारी वंदनीय, पूजनीय है। उसे सादर प्रणाम! नारी में धरती-सी सहनशीलता, जल-सी निर्मलता, फूलों-सी कोमलता है। नारी जीवन की गति, जीवन की रति और जीवन की मति है।

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