ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:
इस धरा पर मृदुल रस धार-सी तुम सुख का सार हो नारी तुम वंदनीय हो, अभिनंदनीय हो, सादर नमन तुम्हें हे नारी…! धरा सी सहनशील, जल-सी निर्मल, फूलों सी कोमल तुम नारी जीवन की गति, जीवन की रति, जीवन की मति हो तुम नारी…!
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘अभिनंदनीय नारी’ नामक कविता से लिया गया हैं जिसके रचयिता जयन्ती प्रसाद नौटियाल हैं।संदर्भ : नारी की महत्ता का गौरव बताते हुए कवि कहते हैं कि वह वंदनीय, अभिनंदनीय है, वह धरती जैसी सहनशील, पानी जैसी निर्मल और कोमल है।स्पष्टीकरण : नारी धरती की कोमल रस-धारा और सुख की सागर है। नारी वंदनीय, पूजनीय है। उसे सादर प्रणाम! नारी में धरती-सी सहनशीलता, जल-सी निर्मलता, फूलों-सी कोमलता है। नारी जीवन की गति, जीवन की रति और जीवन की मति है।