श्मशान ने आह भरकर पहलू में खड़ी पहाड़ी से कहा – “मैं इन्सान को जितना प्यार करता हूँ, उतनी ही घृणा उससे पाता हूँ। सभी मनुष्य यही चाहते हैं कि कभी उन्हें मेरा मुँह न देखना पड़े। पर वास्तव में मैं इतना बुरा नहीं हूँ। संसार में जब मनुष्य को एक दिन के लिए भी स्थान नहीं रह जाता, तब मैं उसे अपनी गोद में स्थान देता हूँ। अमीर-गरीब, वृद्ध-बालक सबको मैं समान दृष्टि से देखता हूँ। पर मेरे पास प्रेम नहीं, मुहब्बत का चिराग नहीं। नहीं जानता खुदा ने मेरे साथ ऐसी बेईमानी का सलूक क्यों किया?”