भीष्म साहनी हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकार हैं। उनकी कहानियों में मध्यमवर्गीय परिवारों के सुख-दुःख, राग-द्वेष का यथार्थ चित्रण हुआ है। ‘खून का रिश्ता’ में एक गरीब, असहाय रिश्तेदार के साथ निर्दय व्यवहार किये जाने का चित्रण है। धन-दौलत के सामने रिश्ते का कोई मूल्य नहीं होता। यही कटु सत्य इस कहानी में प्रकट हुआ है।
वीरजी पढ़ा-लिखा, नौकरीपेशा नौजवान है। उसकी सगाई प्रभा नामक एक सुशील, पढ़ीलिखी युवती से होनेवाली थी। वीरजी एक आदर्शवादी व्यक्ति था। वह धन-दौलत का लोभी नहीं था। वह सिद्धान्तों का पक्का था। वह अपने पिता से कहता है कि वे केवल सवा रुपये का शगुन लेकर रिश्ता पक्का करके आवें। लेकिन पिताजी दहेज के रूप में बड़ी रकम लेना चाहते थे। किन्तु अन्त में बेटे की बात से विवश होकर, सवा रुपये का शगुन लेने के लिए तैयार हो गए।
उनके घर में मंगलसेन नामक दूर का रिश्तेदार रहता था। वह एक सेवानिवृत्त फौजी था। वह इसी घर में इनकी दया से रहता था। वह घर का काम-काज करते हुए अपना गुजारा करता था। मंगलसेन की गरीबी और लाचारी ने उसे एक हास्यास्पद व्यक्ति बना दिया था।
वीरजी की सगाई के कार्यक्रम में उसके पिता मंगलसेन को अपने साथ होनेवाले समधी के घर ले जाना चाहते थे। मंगलसेन को अच्छे कपड़े पहनाकर वीरजी के पिता ले जाते हैं। प्रभा के माँ-बाप ने इनकी खूब आव-भगत की। लड़की वालों ने इनका आदर-सत्कार इतना किया कि मंगलसेन हवा में तैरने लगा। उसने लड़की के बारे में ढेर सारे सवाल किए। जब कि वीरजी के पिता चुप थे। लड़की वालों ने तीन चाँदी की कटोरियों में तीन चाँदी के चम्मच तथा सवा रुपये का शगुन दिया। वीरजी के पिता लड़की वालों के व्यवहार से खुश होकर, आनंद के साथ घर लौटे।
घरवाले इन्हीं का इन्तजार कर रहे थे। इनके घर आते ही, लड़की वालों के यहाँ से लाये तोहफे देखने के लिए टूट पड़े। तीन चम्मचवाली चाँदी की कटोरियाँ देखकर खुशी से सब लोग नाच उठे, लेकिन दो ही चम्मच थे। घर के सब लोग मंगलसेन को दोषी ठहराने लगे। मंगल चाचा ने कहा, तीन चम्मच तो देखे थे। लेकिन दो ही चम्मच देखकर उसे भी आश्चर्य हो रहा था। पर बाबूजी ने उसके कोट, कुर्ते की जेबें तलाश करने की आज्ञा दी। ऐसा ही किया गया परन्तु कुछ भी उनके हाथ नहीं लगा। सभी चिंतित थे।
इतने में प्रभा का छोटा भाई आकर चाँदी का एक चम्मच उन्हें देकर उल्टे पाँव चला गया। घरवालों को तसल्ली हुई। लेकिन बेचारे गरीब मंगलसेन पर आरोप लगानेवालों को उनका ध्यान ही नहीं आया।