जब चन्द्रप्रकाश की पत्नी सरकारी रैन बसेरों को देखकर उनके प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करती है, तब चंद्रप्रकाश कहते हैं- रैन बसेरों में वे ही रात गुजार सकते हैं, जो सुविधा शुल्क दे सकते हैं। गरीब लोगों के लिए नहीं हैं ये रैन बसेरे। इनके पास न खाने के लिए है, न पहनने के लिए। कुछ रुका और फिर धीरे से बुदबुदाया, “क्या जिंदगी है इन लोगों की…..।”