सर्दी में बेघर लोगों को ठिठुरते देख चंद्रप्रकाश का हृदय पिघल गया। वह अपना खाली फ्लैट उन्हें रहने के लिए देना चाहता था, परन्तु पत्नी के समझाने के बाद और सोसाइटी के सदस्यों का भी विरोध होने का कारण, इच्छा होते हुए भी चन्द्रप्रकाश उन गरीब लोगों की मदद नहीं कर पाया। वह चिंता जताता है- “इतनी भयंकर सर्दी का मुकाबला कैसे करेंगे ये बच्चे?” उसने बच्चों को सौ रुपये देने चाहे और कोट की जेब में हाथ डाला, लेकिन फिर यह सोचकर रुक गया कि “सौ रुपये देने से भी इनका क्या भला होगा? सौ रुपये इनको सर्दी से नहीं बचा सकते। फिर इनकी मदद कैसे करूँ?” उसे अपनी इस विवशता पर क्षोभ हुआ। अपना क्षोभ उसने सोसाइटी के पदाधिकारियों पर उतारा – “यदि सोसाइटी वाले अलाऊ कर दें, तो इसमें क्या हर्ज है!”