चन्द्रप्रकाश कर्दम हिन्दी के दलित लेखकों में माने जाते हैं। इनकी कहानियों में प्रायः दलित वेदना का चित्रण मिलता है। ‘शीत लहर’ भी एक ऐसी ही कहानी है। सर्दी के दिनों में दिल्ली की सड़कों पर फुटपाथ पर नारकीय जीवन बिताने वाले गरीबों की दयनीय दशा का वर्णन इस कहानी में देखा जा सकता है। सभ्य समाज गरीबों के प्रति कैसा व्यवहार करता है, इसका मार्मिक चित्रण ‘शीत लहर’ में है।
चन्द्रप्रकाश दिल्ली में रहता था और केन्द्र सरकार का एक अधिकारी था। परिवार सहित सरकारी आवास में उसका निवास था। उसने बैंक से कर्ज लेकर द्वारका कॉलोनी में एक फ्लैट भी खरीदा था, जो इसके दफ्तर से काफी दूर था। इसलिए वह अपने निजी फ्लैट में न जाकर, सरकारी आवास में ही था। इच्छा थी कि किसी अच्छे आदमी को फ्लैट किराए पर दे देंगे।
चन्द्रप्रकाश प्रति मास अपनी पत्नी को साथ लेकर फ्लैट का निरीक्षण कर आता था। फ्लैट के रखरखाव का खर्चा भी सोसाइटी के कार्यालय में एक हजार रुपये दे आता।
जनवरी का महीना था। इस बार दिल्ली में कड़ाके की सर्दी थी। सर्दी से सभी थर-थर कांपते थे। चन्द्रप्रकाश ने सड़क के दोनों ओर सर्दी से ठिठुरते हुए गरीब बच्चों, बूढ़ों को अपनी आँखों से देखा था। उन्हें देखकर उसका दिल पिघल गया। चन्द्रप्रकाश ने अपनी पत्नी से कहा – ये बेचारे कितने अभागे हैं! इनके पास न रहने के लिए छत है, न पहनने के लिए कपड़े और न खाने के लिए भोजन। पत्नी ने उपेक्षा से उत्तर दिया – ये लोग आलसी हैं। कुछ काम क्यों नहीं करते? हमें इनके प्रति कोई दया-दृष्टि दिखाने की आवश्यकता नहीं है। चन्द्रप्रकाश पत्नी की बातें चुपचाप सुनता रहा।
पूनम के साथ चन्द्रप्रकाश अपने घर पहुंचे। उन्होंने देखा कि मकान के अन्दर कई कबूतर अपना घर बना चुके हैं। गंदगी भी हो रही है। वह मन ही मन सोचने लगा – हजारों लोग सर्दी में बेघर होकर सड़कों पर दयनीय स्थिति में जीवन बिता रहे हैं और ये कबूतर आराम से रह रहे हैं। चन्द्रप्रकाश ने सोचा कि क्यों न उन बेघर लोगों को रहने के लिए अपना खाली फ्लैट कुछ दिनों के लिए दे दिया जाय। अपना विचार जब पत्नी के सामने रखा, तो साफ मना कर देती है। हाऊसिंग सोसाइटी के सदस्य भी कहते हैं कि पढ़े-लिखे, सभ्य समाज के बीच में इन लोगों को बसाना उचित नहीं होगा। हम लोग इसकी अनुमति किसी भी हालत में नहीं दे सकते|
पूनम के साथ चन्द्रप्रकाश अपने घर पहुंचे। उन्होंने देखा कि मकान के अन्दर कई कबूतर अपना घर बना चुके हैं। गंदगी भी हो रही है। वह मन ही मन सोचने लगा – हजारों लोग सर्दी में बेघर होकर सड़कों पर दयनीय स्थिति में जीवन बिता रहे हैं और ये कबूतर आराम से रह रहे हैं। चन्द्रप्रकाश ने सोचा कि क्यों न उन बेघर लोगों को रहने के लिए अपना खाली फ्लैट कुछ दिनों के लिए दे दिया जाय। अपना विचार जब पत्नी के सामने रखा, तो साफ मना कर देती है। हाऊसिंग सोसाइटी के सदस्य भी कहते हैं कि पढ़े-लिखे, सभ्य समाज के बीच में इन लोगों को बसाना उचित नहीं होगा। हम लोग इसकी अनुमति किसी भी हालत में नहीं दे सकते|