सिलिया ने सोचा – वह एक चिनगारी है, जो मशाल बनकर अपने समाज की प्रगति के मार्ग को प्रकाशित करेगी। वह जीवन भर कोशिश करेगी कि समाज इन सब बातों को समझे और सही रूप में समाज का हकदार बने। जहाँ चाह होती है, वहाँ राह खुद बनने लगती है। सिलिया ने अपनी मंजिल को जान लिया। वह देश के कोने-कोने में जाकर सामाजिक जागृति का कार्य करने लगी। लगभग बीस वर्ष के बाद देश की राजधानी के प्रख्यात सभागृह में एक प्रतिष्टित साहित्य संस्था द्वारा एक महिला को सम्मानित किया जा रहा है। दलित मुक्ति आन्दोलन की कार्यकर्ता, विदुषी… समाजसेवी… कवयित्री… प्रसिद्ध लेखिका को मंत्रि महोदय ने शाल, सम्मान पत्र, स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। वह महिला कोई और नहीं, सिलिया थी।