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in Class 11 by kratos

सिलिया कहानी का आशय लिखें।

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by kratos
 
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डॉ. सुशीला टाकभौरे हिन्दी की दलित लेखिका हैं। उन्होंने इस कहानी में एक दलित कन्या की करुण-कथा का तथा उसके उत्तरोत्तर विकास का वर्णन किया है।

सिलिया का असली नाम तो शैलजा था, परन्तु उसके माँ-बाप प्यार से उसे ‘सिलिया’ अथवा ‘सिल्लो रानी” कहकर पुकारते थे। सिलिया एक अछूत कन्या थी और मैट्रिक की पढ़ाई करती थी। सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं, बल्कि खेल-कूद में भी सिलिया होशियार थी। स्कूल में खो-खो टीम की कप्तान थी।

सिलिया का जन्म अस्पृश्य कुल में हुआ था। समाज में अछूतों को जो मान-मर्यादा थी, वह अच्छी तरह जानती थी। भले ही उम्र में वह छोटी थी, परन्तु समाज की सभी गतिविधियों से परिचित थी।

एक बार ‘नई दुनिया’ नामक अखबार में विज्ञापन छपा था कि – भोपाल के एक नामी युवा-नेता मैट्रिक पढ़ी दलित कन्या से विवाह करना चाहता है। माँ-बाप का परिचय, पता आदि विवरणों के साथ युवा-नेता से सम्पर्क करने के लिए पूछा गया था। गाँववाले, रिश्तेदार सिलिया के माँ-बाप से अपनी बेटी का फोटो वगैरह भेजने

की सलाह देते हैं। पर सिलिया के माँ-बाप अपनी बेटी की शादी अभी नहीं करना चाहते थे। सिलिया के माँ-बाप चाहते थे कि वह ऊँची शिक्षा प्राप्त करे और समाज में अपने बल-बूते अपना नाम कमाये। सिलिया की भी इच्छा यही थी कि वह अधिक से अधिक पढ़ाई करे।

सिलिया अपने स्कूल के दिनों में कई लोगों से अपमानित हो चुकी थी। वह अछूतों की इस दयनीय हालत को सुधारना चाहती थी। वह अपने दलित समाज का उद्धार भी करना चाहती थी। वह खुद सर उठाकर जीना चाहती थी।

जैसे-तैसे अथक प्रयास करके सिलिया ने उच्च शिक्षा प्राप्त की। शादी-विवाह के झंझट में नहीं पड़ी। ‘दलित मुक्ति आन्दोलन’ की एक कार्यकर्ता बनीं। करीब बीस वर्षों तक सिलिया ने दलितों के उद्धार के लिए दिन-रात काम किया। वह प्रसिद्ध लेखिका थी, भाषणकार थी, क्रियाशील -कार्यकर्ता भी थी। उसने अथक परिश्रम के कारण राष्ट्रीय दलित नेत्री के रूप में नाम कमाया।

देश की राजधानी दिल्ली में सिलिया का अभिनंदन कार्यक्रम था। मंत्री महोदय ने सिलिया का सम्मान किया। तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठा। दलित महिला सिलिया के मुख पर विजय का आनंद दिख रहा था।

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