सिद्धेश्वरी का परिवार घोर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। घर में खाने के लाले पड़े हुए हैं। किसी को भी भरपेट भोजन नसीब नहीं है। इसके बावजूद सिद्धेश्वरी हिम्मत नहीं हारती है। वह घर की आर्थिक स्थिति का जिक्र कर किसी को दुःखी नहीं करना चाहती। वह अपने बच्चों व पति की हिम्मत बढ़ाती है। स्वयं कम खाकर बाकी परिवार को भोजन कराना अपना कर्तव्य समझती है। सिद्धेश्वरी जीवटता, त्याग और साहस की प्रतिमूर्ति है।