‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगीकरण। गत बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है उससे वायुमंडल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियाँ से चौबीसों घंटे निकलने वाले धुएँ ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है। इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुएँ से निकलने वाली ‘कार्बन मोनो आक्सा के कारण आज न जाने कितने प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियाँ आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गाँवों से शहरों की ओर भागना भी वायु-प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु-प्रदूषण को बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
1) वायु-प्रदूषण का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर ही क्यों हुआ है?
2) सड़कों पर चलने वाले वाहन वायु-प्रदूषण में किस प्रकार वृद्धि करते हैं?
3) बढ़ती हुई जनसंख्या का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा है?
4) पर्यावरण की रक्षा के लिए क्या किया जाना चाहिए?
5) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।