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in Class 12 by kratos

लोकमान्य तिलक का कथन है – “मैं नरक में भी पुस्तकों का स्वागत करूँगा, क्योंकि इनमें वह शक्ति है कि जहाँ वे होंगी, वहाँ अपने आप स्वर्ग बन जाएगा।” श्रेष्ठ पुस्तकें मनुष्य, समाज और राष्ट्र का मार्गदर्शन करती हैं। संसार के इतिहास पर दृष्टिपात करने पर हम देखते हैं कि संसार की अनेक महान विभूतियों पर किसी-न-किसी श्रेष्ठ पुस्तक का प्रभाव पड़ा। महात्मा गाँधी, टालस्टॉय, अब्राहम लिंकन – सभी के जीवन में श्रेष्ठ पुस्तकों का महत्वपूर्ण योगदान था। लेनिन में क्रांति की भावना कार्ल मार्क्स के साहित्य को पढ़कर ही जागी थी। किसी भी जाति के उत्कर्ष या अपकर्ष का लेखा-जोखा उसके साहित्य से पता चलता है। गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है क्योंकि उस काल में अत्यंत उत्कृष्ट पुस्तकों की रचना हुई। विचारों के युद्ध में पुस्तकें ही अस्त्र हैं क्योंकि पुस्तकों का हमारे विचारों पर अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ता है तथा पुस्तकों के विचार ही समाज की काया पलट कर देते हैं। श्रेष्ठ पुस्तकें मनुष्य को पशु से देवता बनाती है, उसकी सात्विक वृत्तियों को जाग्रत करती हैं तथा उसे असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलती हैं।

1) लोकमान्य तिलक ने क्यों कहा कि ‘मैं नरक में भी पुस्तकों का स्वागत करूँगा’?
2) लेनिन के मन में क्रांति की भावना किस प्रकार जागी?
3) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
4) श्रेष्ठ पुस्तकों का व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
5) किन विभूतियों के जीवन में श्रेष्ठ पुस्तकों का योगदान था?

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by kratos
 
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1) क्योंकि पुस्तकों में वह शक्ति है, जहाँ वे होंगी, वहाँ अपने आप स्वर्ग बन जाएगा।
2) लेनिन में क्रांति की भावना कार्ल मार्क्स के साहित्य को पढ़कर जागी थी।
3) ‘पुस्तक एक सच्चा साथी’।

4) श्रेष्ठ पुस्तकें मनुष्य को पशु से देवता बनाती हैं। उसकी सात्विक वृत्तियों को जागृत करती हैं।
5) महात्मा गांधी, टालस्टॉय, अब्राहम लिंकन एवं लेनिन के जीवन में श्रेष्ठ पुस्तकों का योगदान था।

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