पेड़ के नीचे बैठकर सुजान विचारों में मग्न हो गया। अपने ही घर में उसका यह अनादर। वह कोई अपाहिज नहीं, घर का सब काम करता है, फिर भी अनादर! उसी ने कमाया, उसी ने सब-कुछ किया, फिर भी कोई अधिकार नहीं! अब वह द्वार का कुत्ता है, जो रूखा-सूखा मिले, वही खाकर पड़ा रहे। ऐसे जीवन को धिक्कार है