जब अंग्रेजी-जहाज में छेद हो गया और वह डूबने की स्थिति में था, तब उसमें यात्रा करनेवाली स्त्रियों को नावों में बैठाकर बचा लिया गया। पुरुष पोत की छत पर चले गये; फिर भी जहाज डूब गया। इस प्रकार पुरुषों ने अपने प्राणों की चिंता किए बिना स्त्रियों को बचाने का कर्तव्य-पालन किया। उन्होंने यही अपना धर्म समझा कि अपने प्राण देकर स्त्रियों और बच्चों के प्राण बचाए जाए।