प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘कर्त्तव्य और सत्यता’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. श्यामसुन्दर दास हैं।
संदर्भ : कर्त्तव्य करने की महत्ता का वर्णन करते हुए लेखक इस वाक्य को पाठकों से कहते हैं।
स्पष्टीकरण : डॉ. श्यामसुन्दर दास कहते हैं कि कर्त्तव्य करना हम लोगों का परम धर्म है। संसार में मनुष्य का जीवन कर्त्तव्यों से भरा पड़ा है। घर में, पारिवारिक सदस्यों के बीच और समाज में मित्रों, पड़ोसियों और प्रजाओं के बीच मनुष्य को अपना कर्त्तव्य निभाना पड़ता है। समाज के प्रति, देश के प्रति सच्चा कर्त्तव्य निभाने से हम लोगों के चरित्र की शोभा बढ़ती है। कर्त्तव्य करना न्याय पर निर्भर है। ऐसे सामाजिक न्याय को समझने पर हम लोग प्रेम के साथ कर्त्तव्य निभा सकते हैं।