प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘गंगा मैया से साक्षात्कार’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी हैं।
संदर्भ : इस वाक्य को गंगा मैया लेखक से साक्षात्कार के अन्तर्गत देश के कलुषित वातावरण के संदर्भ में कहती हैं।
स्पष्टीकरण : गंगा मैया देश के कलुषित वातावरण का वर्णन करते हुए कहती हैं – समाज में महँगाई, रिश्वतखोरी और पाशविकता बढ़ती चली जा रही है। धर्म का व्यापारीकरण हो रहा है। राजनीति के क्षेत्र में तो कहना ही क्या, दल से दल लड़ता रहता है। इन सबका कारण है – ‘कुर्सी’ के लिए झगड़ा। लेखक कहते हैं कि बाजार में खूब कुर्सियाँ उपलब्ध हैं, सस्ती और महँगी से महँगी। कुर्सी का तात्पर्य लेखक को स्पष्ट करते हुए गंगा मैया कहती हैं – कुर्सी से मेरा मतलब शक्ति और शक्ति माने वैभव, धन, सम्मान, कीर्ति आदि। एक बार जबान पर इसका चस्का लग गया तो फिर कुछ अच्छा नहीं लगता।