प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक कहानी यह भी’ नामक पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
संदर्भ : जब डॉ. अंबालाल जी पिता जी से मन्नू की तारीफ सुन रहे थे उस वक्त पिता जी के चेहरे का संतोष धीरे-धीरे गर्व में बदल रहा था।
स्पष्टीकरण : आजाद हिन्द फौज के मुकदमे का सिलसिला था। सभी कालेज, स्कूलों, दुकानों के लिए हड़ताल का आह्वान था। शाम को अजमेर के पूरे विद्यार्थी वर्ग को सम्बोधित करते हुए मन्नू भण्डारी ने एक बड़ा भाषण दिया। इस बीच उसके पिताजी के एक दकियानूसी मित्र ने घर आकर पिताजी से शिकायत की, व्यंग्य किया तो पिताजी आग बबूला हो गए। लेकिन पिताजी के एक बेहद अंतरंग मित्र डॉ. अंबालाल ने मन्नू की खूब प्रशंसा करते हुए बधाई दी। वे बोलते जा रहे थे और पिताजी का संतोष धीरे-धीरे गर्व में बदलता जा रहा था।