प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक कहानी यह भी’ नामक पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
संदर्भ : इस वाक्य में लेखिका अपने पिता जी एवं स्वयं की विचार भिन्नता के बारे में कहती है।
स्पष्टीकरण : प्रस्तुत वाक्य में लेखिका अपने पिता के एवं स्वयं की विचार भिन्नता के बारे में कहती हैं कि कितनी तरह के अन्तर्विरोधों के बीच जीते थे वे! एक ओर ‘विशिष्ट’ बनने और बनाने की प्रबल लालसा, तो दूसरी ओर अपनी सामाजिक छवि के प्रति सजगता। पर क्या यह संभव है? क्या पिता जी को इस बात का बिल्कुल भी अहसास नहीं था कि इन दोनों का तो रास्ता टकराहट का है?