सर एम. विश्वेश्वरय्या एक कर्मयोगी थे। वे समय के पाबन्द थे। वे समय के सदुपयोग के बारे में अच्छी तरह जानते थे। समय पर अपने सभी काम करते थे। उन्होंने जीवन पर्यंत विश्राम नहीं लिया। वे सदा मेहनत करते थे, दूसरों से भी यही आशा रखते थे। वे सेवाभाव को अत्यंत पवित्र आचरण मानते थे। जिन्दगी भर देश की तथा मानव-समाज की सेवा में लगे रहे। उनका चरित्र आदर्शपूर्ण था। वे विनयशील तथा साधु प्रकृति के थे। ईमानदारी तो उनके चरित्र की अटूट अंग ही थी। असाधारण प्रतिभा रखते हुए भी उन्होंने कभी गर्व का अनुभव नहीं किया। अपने श्रम और स्वावलम्बन द्वारा कोई भी शिखर तक पहुंच सकता है, इसके जबर्दस्त प्रमाण है – विश्वेश्वरय्या।