चीफ़ साहब बरामदे में आ गए। माँ हड़बड़ाकर उठ बैठी। झट से पल्ला सिर पर रखती हुई खड़ी हो गईं। उनके पाँव लड़खड़ाने लगे, अंगुलियाँ थर-थर काँपने लगी। चीफ के चेहरे पर मुस्कराहट थी। उन्होंने कहा – नमस्ते! माँ ने सिमटते हुए दोनों हाथ जोड़े। चीफ ने हाथ मिलाने को कहा। माँ घबरा गई। शामनाथ ने कहा – माँ हाथ मिलाओं। पर हाथ कैसे मिलातीं? दायें हाथ में माला थी। घबराहट में माँ ने बायाँ हाथ ही साहाब के दाये हाथ में रख दिया। शामनाथ दिल-ही-दिल में जल उठे। देसी अफसरों की स्त्रियाँ खिलखिलाकर हँस पड़ी।