प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘चीफ़ की दावत’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. भीष्म साहनी हैं।
संदर्भ : जब चीफ़ साहब ने फुलकारी देखी और पसंद की, तो शामनाथ ने अपनी माँ से यह वाक्य कहा। –
स्पष्टीकरण : साहब बड़ी रूचि से फुलकारी देखते है। पुरानी फुलकारी थी। जगह-जगह से उसके धागे निकले थे, कपड़ा भी फटनेलगा था। साहब की रूचि देखकर शामनाथ ने कहा यह फटी हुई है, साहब मैं आपको नई बनवा दूंगा! क्यों, माँ, साहब को एक ऐसी ही फुलकारी बना दोगी न?