प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘चीफ़ की दावत’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. भीष्म साहनी हैं।
संदर्भ : इस वाक्य को शामनाथ ने अपनी माँ से कहा।
स्पष्टीकरण : शामनाथ के घर पर चीफ़ की दावत थी। चीफ़ साहब इस पार्टी से खुश हुए तो शामनाथ को तरक्की मिलने की संभावना थी। शामनाथ और उनकी पत्नी जोर-शोर से तैयारियाँ करते हैं। उन दोनों के लिए एक ही चिन्ता का विषय है – माँ। शामनाथ की माँ गाँव की रहनेवाली हैं, अंग्रेजी रीतिरिवाजों से अपरिचित थीं। यदि चीफ़ साहब की भेंट माँ से हुई तो, अथवा देसी अफसर, उनकी स्त्रियाँ माँ को देखकर हँसने लगे तो किया धरा मिट्टी में मिल जाएगा। लेकिन चीफ़ साहब माँ से बहुत खुश हो जाते हैं। उनसे पंजाबी लोक गीत गवाते हैं और ‘फुलकारी’ बनाकर देने के लिए कहकर पार्टी से खुश होकर लौट जाते हैं। शामनाथ को सबसे ज्यादा संतोष होता है। अपनी माँ की कोठरी में जाकर ‘अम्मी’ को गले लगाकर कहते हैं “ओ अम्मी! तुमने तो आज रंग ला दिया।’