भोलाराम जबलपुर शहर के घमापुर मुहल्ले में नाले के किनारे टूटे-फूटे मकान में पत्नी, दो लड़के और एक लड़की के साथ रहता था। वह सरकारी नौकर था। पाँच साल पहले रिटायर हो गया था। पेंशन नहीं मिला। हर दस-पंद्रह दिन में एक दरख्वास्त देता लेकिन अभी तक पेंशन नहीं मिला था। चिन्ता में घुलते-घुलते और भूखे मरते-मरते उन्होंने दम तोड़ दिया। जब नारद जी भोलाराम के जीव को ढूँढते उस घर तक पहुंचे और उसकी पत्नी से सब कहानी जान गये तो अंत में उसकी पत्नी ने नारद से एक विनती की – “महाराज, आप तो साधु हैं, सिद्ध पुरुष हैं। क्या आप कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उनकी रूकी हुई पेंशन मिल जाये। इन बच्चों का पेट कुछ दिन भर जाए।”