प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘भोलाराम का जीव’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं।
संदर्भ : धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों का स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान ‘अलॉट’ करते आ रहे थे। पर ऐसा कभी नहीं हुआ था की कोई जीव यमदूत को चकमा देकर अदृश्य हुआ।
स्पष्टीकरण : धर्मराज के सामने एक विकट समस्या आ खड़ी हुई। इससे पहले यमलोक में ऐसा कभी नहीं हुआ था। धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास स्थान ‘अलॉट’ करते आ रहे थे। एक बार भी ऐसा नहीं हुआ था। चित्रगुप्त ने रजिस्टर पर रजिस्टर देख कर बताया – महाराज, रिकार्ड सब ठीक है। भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ पर यहाँ अभी तक नहीं पहुंचा। वह यमदूत भी लापता है। असल में भोलाराम का जीव यमदूत को चकमा देकर गायब हो गया था।