प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘भोलाराम का जीव’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं।
संदर्भ : सरकारी दफ्तर के बड़े साहब ने इस वाक्य को समझाते हुए नारद जी से कहा।
स्पष्टीकरण : नारद जी भोलाराम के जीव को ढूँढते हुए पृथ्वी पर आए। भोलाराम की पत्नी से . सारी कथा सुनकर उसकी रुकी हुई पेंशन दिलाने का प्रयत्न करने का आश्वासन देते हुए सरकारी दफ़्तर में पहुंचे। एक बाबू साहब से पता चला कि भोलाराम ने दरख्वास्तें तो भेजी थीं, पर उन पर वज़न नहीं रखा था, इसलिए कहीं उड़ गयी होंगी। आखिर बड़े साहब से भी यही उत्तर मिलता है तो नारद वजन का अर्थ समझ नहीं पाये। बड़े साहब नारद जी को समझाते हए कहते हैं कि जैसे आपकी यह सुंदर वीणा है, इसका भी वज़न भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है। मेरी लड़की गाना-बजाना सीख रही है। यह मैं उसे दे दूंगा। साधु-संतों की वीणा से तो और अच्छे स्वर निकलते हैं। तब कहीं नारद समझ पाये।