प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘यात्रा जापान की’ नामक पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका ममता कालिया हैं।
संदर्भ : सुरेश ऋतुपर्ण ने यह वाक्य मेट्रो-ट्रेन टिकट निकालते समय प्रतिनिधियों से कहा।
स्पष्टीकरण : सुरेश ऋतुपर्ण ने यह वाक्य रेल-टिकट निकलवाते समय प्रतिनिधियों से धैर्य के साथ कहा – यहाँ टिकट खाँचे में डालकर जल्द अन्दर घुसो, उस पार जाकर अपनी टिकट उठा लो। मेट्रो-ट्रेन के टिकट के लिए सावधानी व फुर्ती दोनों की आवश्यकता होती है।