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in Class 12 by kratos

यात्रा जापान की कहानी का सारांश लिखें।

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by kratos
 
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प्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत में जापान के तोक्यो विश्वविद्यालय में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन का, जापान के लोगों का रहन-सहन, भाषा, सभ्यता, संस्कृति के अलावा वहाँ की प्राकृतिक छटा, ऐतिहासिक धरोहरें, किले, मंदिर, पुस्तकालय, मेट्रो-ट्रेन इत्यादि की विस्तृत जानकारी दी गयी है।

तोक्यो में ‘कलकत्ता’ नामक भारतीय रेस्तराँ है। यहाँ दीवारों पर भारतीय चित्रकारी तथा भारतीय व्यंजनों की व्यवस्था है। सबसे पहले गरम पानी पीने के लिए दिया जाता है। पानी के लिए जापानी भाषा में शब्द है – ‘मिजु।’ शालीनता जापानियों का गुणधर्म है। जापान के रेल स्टेशनों में हर काम पलक झपकते करना होता है। जापानी यात्री धक्का-मुक्की नहीं करते। हमारे देश की तरह महिलाओं के लिए, बुजुर्गों तथा विकलांगों के लिए सीटों का वर्गीकरण नहीं होता है।

तोक्यो के पुस्तकालय में देश-विदेश की अनेक विषयों की पुस्तकें हैं। विद्युतचालित अलमारियों में पुस्तकें सुरक्षित रहती हैं। यहाँ की न्यू ट्रंक लाइन को बुलेट ट्रेन भी कहते हैं। यह 170 किलोमीटर प्रति घंटा चलनेवाली ट्रेन है। इसमें 16 डिब्बे होते हैं और 1300 यात्री सवार हो सकते हैं। तोक्यो और ओसाका के बीच 66 गुफाएँ हैं।

किले को ‘जो’ कहते हैं और ‘जी’ का अर्थ होता है मंदिर। सन् 1585 में सम्राट तोयोतोमी हिदेयोशी नामक सम्राट ने ओसाका का किला बनवाया था। किले के चारों ओर खाई और जलाशय है। प्रवेश द्वार पर विशाल फाटक है। यह किला जापानियों के संघर्ष का प्रतीक है। नारा का प्रसिद्ध मंदिर है – तोदायजी, जिसकी स्थापना 743 ई. में हुई थी। मंदिर के अधिष्ठाता गौतम बुद्ध (दायबुत्सु) हैं। काली व भूरी लकड़ी की स्थापत्य कला देखने लायक है। तोदायजी से जुड़ा एक हिरन वन है। मंदिर से हिरन-वन तक का रास्ता प्राकृतिक छटा से ओतप्रोत है। ऊँची पहाड़ी से नारा शहर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।

अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में विश्वभर के हिन्दी विद्वान आये थे। विशेषता यह थी कि जापान में हिन्दी विद्वानों का एक बहुत बड़ा समूह है। वे हिन्दी और उर्दू के विद्वान माने जाते हैं। भारतीय हिन्दी साहित्य के अच्छे ज्ञाता माने जाते हैं। सम्मेलन में कई पुस्तकों का लोकार्पण हुआ और जाने-माने कई विद्वानों को सम्मानित किया गया। जापानियों का हिन्दी प्रेम देखते ही बनता था। सम्मेलन विश्वबंधुत्व का परिचायक था। जापान में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार होने से प्रायः वहाँ की सभ्यता, संस्कृति भारतीय संस्कृति से बहुत कुछ मिलती-जुलती है। स्वभाषा-प्रेम तथा स्वदेश-भक्ति की सीख जापानियों से लेनी चाहिए।

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