प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ से लिया गया है जिसके रचयिता संत रैदास हैं।
संदर्भ : कवि ने भगवान के प्रति पूरे समर्पण भाव को स्वीकारते हुए स्वयं को पानी तथा प्रभु को चंदन के रूप में स्वीकार किया है।
भाव स्पष्टीकरण : रैदास जी कहते हैं कि अब उनका मन राम में लग गया है। वह अब प्रभु-भक्ति से छूटेगा नहीं। वे कहते हैं – प्रभु जी चन्दन के समान है और हम पानी के समान है जिसके शरीर पर लगने से अंग-अंग सुगंध से भर गया है। प्रभु जी बादल के समान हैं और भक्त मोर के समान। आसमान में बादल दिखते ही मोर नाच उठता है। वैसे ही प्रभु का नाम सुनते ही भक्त रोमांचित हो जाता है। जिस प्रकार चकोर पक्षी चाँद को निहारता है वैसे ही रैदास प्रभु की ओर निहारते रहते हैं।
विशेष : अलंकारः अंत्यानुप्रास, दास्य भक्ति, शरणागत तत्व।