भक्ति काल के निर्गुण संतों में संत रैदास का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। आपका ज्ञान सत्संग एवं लौकिक अनुभव का प्रतिफल था। आप अपने आचरण में संत और साधना में भक्त थे। आपकी भक्ति सरल और सहज है। उसमें न तो योग-मार्ग की जटिलता है और न भक्ति का शास्त्रीय विधान। रैदास वस्तुतः प्रेमा भक्ति से अनुगत थे। आपकी वाणी में भक्ति भावना, समाज का व्यापक हित, मानव प्रेम आदि को स्थान मिला है। आपके भजन एवं उपदेशों से लोग प्रेरित होकर अनुयायी बन जाते थे। आपकी वाणी का प्रभाव समाज के सभी वर्गों पर विद्यमान था। संत रैदास जी ने अपने आचरण और व्यवहार से प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म और व्यवसाय के कारण महान नहीं बनता बल्कि विचारों की श्रेष्ठता और गुण के आधार पर ही श्रेष्ठ बनता है।