गोपिकाएँ अपने आपको भाग्यशालिनी समझती हैं क्योंकि जिन आँखों से उद्धव ने श्रीकृष्ण को देखा था, वे आँखें अब उन्हें मिल गई हैं अर्थात् गोपिकाएँ उद्धव के आँखों में श्याम की आँखें, श्याम की मूरत देख रहें हैं। जैसे भोरें के प्रिय सुमन की सुगंध को हवा ले आती है वैसे ही उद्धव को देखकर उन्हें अत्यधिक आनन्द हो रहा है तथा उनके अंग-अंग सुख में रंग गया है। जैसे दर्पण में अपना रूप देखने से दृष्टि अति रुचिकर लगने लगती है, उसी प्रकार उद्धव के नेत्र रूपी दर्पण में कृष्ण के नेत्रों के दर्शन कर गोपिकाओं को बहुत अच्छा लग रहा है और अपने आपको भाग्यशालीनी समझती हैं।