प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘रहीम के दोहे’ से लिया गया है जिसके रचयिता रहीम जी हैं।
संदर्भ : प्रेम मार्ग या भक्ति मार्ग की संकीर्णता एवं सुगमता का परिचय इसमें मिलता है।
भाव स्पष्टीकरण : भगवान को पाने का मार्ग अथवा भक्तिसाधना के मार्ग का वर्णन करते हुए रहीम जी कहते हैं कि प्रेममार्ग बहुत ही कठिन है। उस रास्ते में भक्ति के अलावा दूसरे के लिए स्थान नहीं है। सांसारिक ‘विषयों’ से ग्रस्त व्यक्ति भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता। भगवान की प्राप्ति के लिए कठिन साधना एवं एकनिष्ठता अनिवार्य है जहाँ ‘अहं’ के लिए स्थान ही नहीं है। अर्थात् अहंकारी व्यक्ति भगवान के प्रेम को नहीं पा सकते।
विशेष : एकेश्वर ‘ईश्वर’ की प्रधानता।
भाषा – अवधी, ब्रज और खड़ीबोली।