प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘रहीम के दोहे’ से लिया गया है जिसके रचयिता रहीम जी हैं।
संदर्भ : रहीम ने इस दोहे में जीभ से होने वाले अनर्थों का वर्णन किया है।
भाव स्पष्टीकरण : इस संसार में सारे अनर्थों के लिए बिना सोचे-समझे किए गए व्यर्थ-प्रलाप ही कारण है। बातों से बिगड़ी हुई बात बन भी सकती है या बना-बनाया काम बिगड़ भी सकता है। रहीम इसी को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जिह्वा (जीभ) पगली है, उल्टा-सीधा कहकर आराम से अंदर पहुंच जाती है लेकिन उसका
परिणाम सिर को भोगनी पड़ती है। जूतों की मार सहनी पड़ती है। जिह्वा को काबू में रखना चाहिए नहीं तो उसका परिणाम भुगतना पड़ता है।
विशेष : छंद – दोहा; अलंकार – अंत्यानुप्रास।