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in Class 12 by kratos

ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :

निज कर क्रिया रहीम कहि, सुधि भावी के हाथ।
पाँसे अपने हाथ में, दाँव न अपने हाथ॥

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by kratos
 
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प्रसंग : इस दोहे को हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘रहीम के दोहे’ से लिया गया है। इसके रचयिता रहीम जी हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम ईश्वर के सर्वशक्तिमान स्वरूप का वर्णन कर रहे हैं।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि कर्म करते रहना ही मनुष्य के हाथ में है। उसकी सफलता ईश्वर के हाथ में होती है। चौपड़ का खेल ही देख लीजिए। पांसा अपने हाथ में है, पर दाँव अपने हाथ में नहीं है। अर्थात् ईश्वर ही सर्वशक्तिवान है। वह सब कुछ देखता है। उसने सबके लिए जीवन को नियत कर रखा है। हमारा कर्तव्य सिर्फ कर्म करते रहना है। सफलता, असफलता, लाभ, हानि, सुख, दुःख यह सब ईश्वर का खेल है। हमें ईश्वर में भरोसा रखना चाहिए।

विशेष : दोहा छंद का प्रयोग। भाषा ब्रज मिश्रित। कर्मफल के सिद्धांत की महत्ता बताई गई है।

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