गागर में सागर भरने वाले रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि बिहारी लाल का जन्म ग्वालियर के पास ‘बसुआ’ गोविंदपुर नामक गाँव में हुआ। बिहारी अपने समय के असाधारण कवि थे। ‘बिहारी सतसई’ सबसे अधिक लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध रचना है। इस ग्रंथ पर अनेक भाषाओं में टीकाएँ लिखी गई हैं। आपके दोहों का मुख्य विषय श्रृंगार वर्णन है। आपने भक्ति और नीति विषयक दोहों की भी अत्यंत सफलता पूर्वक रचना की है।
‘बिहारी सतसई’ श्रृंगार का तो सागर है ही, साथ ही मानव-जीवन और समाज के विभिन्न पहलुओं की मार्मिक एवं निर्माणपरक झाँकी भी प्रस्तुत करती है। आपके नीति के दोहे सांसारिक ज्ञान को सामने ला देते हैं। सतसई में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की सामग्री उपस्थित है। विषय की यह व्यापकता रीतिकाल के अन्य कवियों में नहीं मिलती। बिहारी का भाषा भंडार अत्यंत विस्तृत है। भाव और परिस्थिति के अनुकूल ब्रज और संस्कृत भाषा के शब्दों का सुंदर प्रयोग किया है।