महादेवी वर्मा कहती हैं कि जीवन में सुख और दुख दोनों का समान महत्व है। ये जीवन के अभिन्न अंग हैं। जिस तरह मेघ की सार्थकता पिघल कर बरसने में, जग को आनंद देने में है, उसी तरह जीवन की सार्थकता परिस्थितियों का सामना करने में है न कि उनसे पलायन करने में। मनुष्य के लिए आवश्यक है कि वह जीवन को उसकी परिपूर्णता में स्वीकार करे।