प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘अधिकार’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसकी रचयिता महादेवी वर्मा हैं।
संदर्भ : यहाँ महादेवी वर्मा अपने अज्ञात प्रियतम से कहती हैं कि जिसमें न तो विरह वेदना है और न ही किसी का दुख है, हे देव यह लोक मुझे नहीं चाहिए। मैं तो इस लोक में अपने वेदनामय जीवन से ही सुखी हूँ।
स्पष्टीकरण : महादेवी वर्मा इन पक्तियों में कहती हैं कि जिस लोक में अवसाद नहीं, वेदना नहीं, ऐसे लोक को लेकर क्या होगा? जो खुद अपने लिए जीता है, उसका जीना भी क्या? जो परिस्थितियों का डटकर सामना करता है, वही असली जीना जीता है। जिसमें आग नहीं, जिसने जलना नहीं जाना, उसका जीना भी क्या? वह तो खुशी से मर-मिटना भी नहीं जानता। जो दुःख का सामना करना जानता है, मर-मिटना जानता है, वही मुसकुराना भी जानता है।