+1 vote
in Class 12 by kratos

ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :

वे सूने से नयन, नहीं-
जिनमें बनते आँसू-मोती;
वह प्राणों की सेज, नहीं-
जिनमें बेसुध पीड़ा सोती;

1 Answer

+1 vote
by kratos
 
Best answer

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘अधिकार’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसकी रचयिता महादेवी वर्मा हैं।

संदर्भ : उपरोक्त पद्यांश में कवयित्री अपने अज्ञान प्रियतम की विरह-पीड़ा पर अधिकार बनाये रखना चाहती हैं। वे सांसारिक जीवन में ही रहने की कामना करती है।

स्पष्टीकरण : महादेवी वर्मा अपने प्रियतम (परमात्मा) को संबोधित करते हुए कहती हैं कि मैने सुना है आपके स्वर्ग लोक में कभी कोई वियोग में, दुःख में रोता नहीं हैं। उनके आँसुओं से रहित नेत्र बड़े ही सूने-सूने से दिखते हैं। स्वर्ग के निवासियों के नेत्रों से कभी आँसू मोती बनकर नहीं छलकते हैं। वहाँ के लोग विरह-व्यथा से दुःखी होकर सेज पर नहीं सोते अर्थात उन्हें कभी विरहव्यथा नहीं सताती है। इस तरह की सेज जिस पर पीड़ा से व्यथित होकर लोग न सोते हो, उसकी मेरी कोई कामना नहीं है। मुझे तो यह सांसारिक सुख-दुःख ही अच्छे लगते हैं।

विशेष : साहित्यिक हिन्दी। खड़ी बोली का प्रयोग। छायावादी भाव की कविता। वियोग रस का निरूपण।

...