प्रसंग : इस कवितांश को हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कायर मत बन’ पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता नरेन्द्र शर्मा जी हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत कविता में कवि मनुष्य को कायर न बनने का संदेश दे रहे हैं।
व्याख्या : कवि कह रहे हैं कि हे मनुष्य! तेरी रक्षा हो, इसका कोई मूल्य नहीं है। पर यह भी कटु सत्य है कि मानवता भी एक बहुमूल्य वस्तु है। यदि मनुष्य मानवता की रक्षा के लिए अपने को मिटा देता है, तभी मनुष्यता की, मानव जाति की रक्षा हो पाती है। सत्य का यही मानदंड है। अर्थात् जीवन अमूल्य है। इस पर कोई प्रश्न नहीं है लेकिन व्यक्ति जीवन से ज्यादा बहुमूल्य मानव जीवन है। मनुष्यता, मानव जीवन चलता रहता है। अगर मानव जीवन ही नष्ट हो गया तो मनुष्य भी कहाँ बचेगा। इसलिए मनुष्य को बलिदान के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
विशेष : खड़ी बोली का प्रयोग। प्रेरणादायक कविता।