कवि कुँवर नारायण जी अबकी बार घर लौटे तो देखा कि वह बूढ़ा चौकीदार वृक्ष घर के दरवाजे पर नहीं है। वे बहुत उदास हो जाते हैं, उसकी यादों में खो जाते हैं। उसका शरीर पुराने चमड़े का बना था। वह बहुत ही मजबूत था। झुर्रियोंदार खुरदरा उसका तन मैला कुचैला था। उसकी एक सूखी डाली राइफिल सी थीं। फूल-पत्तीदार पगड़ी धारण किया वह वृक्ष बहुत ही सालों से स्थिर मजबूत ढंग से खड़ा था। धूप में, बारिश में, गर्मी में, सर्दी में अर्थात् सभी मौसमों में हमेशा चौकन्ना होकर घर की रखवाली करता था। कवि और उसके बीच एक प्रकार से दोस्ती हो गयी थी। उसकी ठंडी छाया में कुछ पल बैठकर ही कवि घर के अंदर प्रवेश करते थे।