प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता कुँवर नारायण हैं।
भाव स्पष्टीकरण : कवि अब की बार जब घर लौटे तो देखा घर के दरवाजे पर तैनात पुराना वृक्ष नहीं था। उसे स्मरण करते हुए कवि कहते हैं कि बूढ़ा वृक्ष जो चौकीदार जैसा लगता था, हमेशा मेरे दरवाजे पर तैनात रहता था। उसका शरीर बूढ़ा हो चला था लेकिन सख्त जान, कई मौसमों से वह गुजर चुका था। झुर्रियोंदार, खुरदुरा और मैला कुचैला लगता था। उसकी एक सूखी डाल राइफिल सी लगती थी। वृक्ष के ऊपर फैली फूल-पत्तियाँ उसकी पगड़ी जैसी दिख रही थी। उसके पाँव में फटे पुराने चरमराते हुए जूते थे। वह वृक्ष अक्खड़ता के बल बूते मजबूत खड़ा था – छाया देते हुए; स्वच्छ हवा देते हुए लेकिन ऐसा वृक्ष कट गया था। इस तरह कवि ने उस वृक्ष का विस्तार से वर्णन किया है।