प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता कुँवर नारायण हैं।
संदर्भ : अपने घर के दरवाजे पर तैनात वृक्ष के कट जाने पर कवि उसकी यादों में खो जाते हैं, और साथ ही साथ पर्यावरण के विनाश के प्रति मनुष्य को सचेत भी करते हैं।
भाव स्पष्टीकरण : कवि वृक्ष के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं। यदि वृक्ष के महत्व को हम नहीं समझेंगे और वृक्षों को इसी तरह काटते रहेंगे तो आगे आने वाले दिनों में बहुत संकट झेलने पड़ेंगे। इसकी शुरूआत हो चुकी है। भू ताप लगातार बढ़ रहा है, मौसम में बदलाव आ रहा हैं, और जल संकट लगातार बढ़ रहा है। साफ ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण सैकड़ों बीमारियाँ फैल रही हैं। अगर हम अब भी पर्यावरण के संरक्षण के लिए सजग नहीं होते हैं तो यह संकट और अधिक विनाशकारी होता जाऐगा। इसलिए हमें नदियों को अगर नाले में बदलने से बचाना है तो हमें अच्छी बारिश के लिए वृक्षों को बचाना है। अगर वृक्ष नहीं होंगे तो ऑक्सीजन की जगह सिर्फ धुंआ ही बचेगा। हमें खाने पीने की चीजों को प्रदूषित होने से बचाना है। उपजाऊ जमीन को रेगिस्तान में तबदील होने से बचाने के लिए जंगलों को बचाना है। और सिर्फ नदी, हवा, जंगल ही नहीं बल्कि मनुष्यता को भी बचाना है।
विशेष : पर्यावरण के प्रति कवि की संवेदना व्यक्त हुई है।
भाषा शैली – साहित्यिक हिन्दी खड़ी बोली।