प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता दुष्यन्त कुमार हैं।
संदर्भ : इस गजल में कवि ने देशवासियों को जागरण का संदेश देते हुए आमूल चूल परिवर्तन का आवाहन किया है।
भाव स्पष्टीकरण : कवि कहते हैं कि आज यह जाति भेदभाव, धर्म और शोषण की दीवार ऐसे हिल रही है, मानो खिड़कियों व दरवाजों के लगे हुए परदे हिल रहे हैं। वास्तव में होना यह है कि सम्पूर्ण बुनियाद ही हिल जाये, ताकि फिर से कुछ नया निर्माण किया जा सके। ऐसी शर्त रख रहे हैं कि परिवर्तन की चाह है जिसमें धर्म-जाति, भेदभाव, शोषण, अत्याचार को जड़ से मिटाना चाहिए।