प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता दुष्यन्त कुमार हैं।
संदर्भ : इसमें देशवासियों को जागरण का संदेश मिलता है।
भाव स्पष्टीकरण : देश की तत्कालीन परिस्थितियों का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि दुःखी लोगों की पीड़ा पर्वत सी बन गई है, उसे पिघलना चाहिए। मनुष्य-मनुष्य के बीच जो दीवार बन गई है, उस दीवार की बुनियाद हिलनी चाहिए। हर शहर, हर गाँव के दलित, पीड़ित व्यक्ति को खुशहाली से जीना चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना कवि का उद्देश्य नहीं है, वे इन समस्याओं का समाधान चाहते हैं। देश की परिस्थितियाँ बदलनी चाहिए। सभी को सामंजस्यपूर्ण सुखी जीवन बिताने की व्यवस्था होनी चाहिए।